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रहस्यमाई चश्मा भाग - 42

कर्म महत्त्वपूर्ण है अतः पूरी गांव कि पंचायत गांव के मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी गांव के दलित समाज को सौंपती है पुजारी तीरथ राज जी ने सहमति जताते हुए गांव के दलित समाज को ही सादर निमंत्रण दे दिया गांव के मंदिर पुनर्निर्माण का जिसका गांव के सम्पूर्ण दलित समाज ने अपने लिये बहुत बड़ा सम्मान मानकर करतल ध्वनि से जिम्मेदारी का स्वागत किया दलित समाज के मुखिया आँचल ने पंचों के समक्ष गांव द्वारा दी गयी जिम्मेदारी को ससम्मान अभिमान समझकर निर्वहन करने का वचन दिया और गांव का पूरा दलित समाज क्या बच्चा क्या बूढ़ा क्या जवान युवा सब चल पड़े एक साथ गांव के मंदिर जीर्णोद्धार के लिये नत्थू के शातिर साम्राज्य कि शातिर चाल ध्वस्त हो धूल धुसित हो गयी औऱ मंदिर पुनर्निर्माण का कार्य तेजी से होने लगा ।

कहते है लालच इंसान को किसी हद तक पतनोन्मुख बना देती है नत्थू को लगा कि यदि उसके ही गांव उसका खौफ खत्म हो गया तो उसे तो आम जन पागल कि तरह दौड़ा दौड़ा कर मार डालेगी क्योकि उंसे पता था कि उसने यशोवर्धन के परिवार का ही नही गांव एव जवार में जाने कितने परिवारों को समाप्त करने में भूमिका निभाई है।

श्यामचरण जी एव गांव के सभी परिवारों को एक ही भय था जो परेशान किये जा रहा था की कही नत्थू गांव में हिन्दू मुश्लिम का फसाद ना खड़ा कर दे।लेकिन पूरा गांव मंदिर पुनर्निर्माण एव विद्यालय निर्माण में पूरे जोश खरोस के साथ जुड़ चुका था और निर्माण कार्य बहुत तेजी से चल रहा था ।नत्थू इसी फिराक में रहता की किस तरह से गांव को इस स्तर पर ही रखा जाए!

जिससे गांव में बहुत हलचल या गांव का विकास होने पर तरह तरह के अधिकारियों लोंगो का आना जाना शुरू होगा और गांव के लोंगो का भी सम्पर्क समाज के अन्य वर्गों एव आस पास के क्षेत्रों के साथ बढ़ेगा जिसके कारण उसका साम्राज्य तो ध्वस्त होगा और उसका अंत भी बहुत खौफनाक होगा,,,

गांव वाले नत्थू कि फितरत से भिन्य लेकिन बेख़ौफ़ अपना कार्य कर रहे थे और चौधरीं साहब के संकल्प पर बढ़ते जा रहे थे मंगलम चौधरीं जबसे श्यामाचरण झा जी एव तीरथ राज जी से मिलकर लौटे थे और उन्हें शुभा कि सच्चाई मालूम हुई थी तभी से उन्हें शुभा कि प्रथम मुलाकात एव बिछड़ने के दिन तक के प्रत्येक दृश्य जीवंत हो उनके मानस पटल पर उन पल प्रहरो को जीवंत कर देते जो मंगलम चौधरी को सोते जागते शुभा की बाते उसकी मुलाकातें उसकी भावनाओं कि स्पर्श स्प्ष्ट अनुभूति तो होती ही उनके कानो में शुभा की बाते गूंजती रहती मंगलम चौधरी से मिलने जुलने में पिता यशोवर्धन एव माँ सुलोचना कि तरफ से कोई बाधा नही थी क्योकि उनको पता था कि मंगलम उनके मिथिलांचल का ही मैथिल है और जाति का भी है साथ ही साथ उनके समक्ष बराबरी का भी उसके पिता भी कई मिलो के मॉलिक एव समम्मानित एव प्रतिष्ठित व्यवसायी है,,,,

अतः दिनों परिवारों के रिश्ते में कोई बाधा नही थी बैठे बैठाए शुभा बिटिया के लिये योग्य रिश्ता उनकी दृष्टि में मंगलम चौधरी था मंगलम चौधरी अक्सर समय निकल कर और कारण खोज कर शेरपुर यशोवर्धन परिवार से मिलने जाते और कोई न कोई बहाना खोज कर शुभा भी उनके साथ समय निकाल लेती और माता पिता कि अनुमति मिल जाती मंगलम चौधरी को जब भी शुभा का स्मरण करते उसके साथ बिताए पलो में ऐसा खो जाते जैसे कि उन्हें किसी भी बात का ध्यान ही रहता उन्हें बहुत रहता ।

संत समाज निद्रा से शुभा के जागने की प्रतीक्षा कर रहा था वह निद्रा में जाने क्या क्या बोलती रहती संत समाज कुछ भी समझ सकने में असमर्थ था निद्रा में शुभा विराज सुयश को तो निरंतर बोलती रहती बीच बीच मे अजीबो गरीब हरकते करती जैसे एका एक बैचेनी में बड़बड़ाना मत मारो हम लोंगो ने क्या विगड़ा है कभी कभी वह बहुत जोरो से चिल्लाने लगती बचाओ बचाओ संकल्प भईया को कभी कहती संवर्धन भईया को कभी मॉ को कभी बाबूजी को कभी माँ को फिर बोलती बड़ी बेरहमी से मार डाला माई बाबूजी को संकल्प संवर्धन को उन्ही बेरम लांगो ने मारा जिनके लिए बाबूजी जीवन भर वो सब कुछ करते रहे जो उनकी बेहतरी के लिए आवश्यक था । शुभा को निद्रा में गए पूरे एक सप्ताह बीत चुके थे संत समाज सिर्फ शुभा द्वारा नीद में बड़बड़ाने से इसी निष्कर्ष पर पहुंचा था कि शुभा किसी भयंकर हालात की शिकार हुई है जिसे इसने देखा है और स्वंय जिया है वनवासी आदिवासी समाज भी इसी नतीजे पर पहुंचा था लेकिन रहस्य यह था कि वह कौन सी घटना या दुर्घटना शुभा के जीवन मे घटित हुई है

जिसका बहुत गहरा प्रभाव शुभा के मन मस्तिष्क पर तो है ही साथ ही साथ उसके जीवन पर भी गहरा प्रभाव है जो इसके वर्तमान का निश्चित रूप से जिम्मेदार है लेकिन सच्छाई कोई ना तो जानता था ना ही समझता था सिर्फ अनुमान ही लगा सकता था संत समाज एव वनवासी आदिवासी समाज के कल्पना में भी यह बात नही आ रही थी कि शुभा भारत पाकिस्तान बँटवारे कि त्रादसी कि शिकार परिवार की एक मात्र जीवित सदस्य शुभा है!

शुभा को निद्रा में गए एक सप्ताह बीत चुके थे लेकिन वह जगने का नाम ही नही ले रही थी अब संतस्माज को यह चिंता सताने लगी कि शुभा किस नए बीमारी समस्या का शिकार हो गयी उसका निद्रा में बड़बड़ाना जारी था एकाएक वह बोली यशोवर्धन तो यस को बढाने वाले को ही कहा जाता है,,,,

शुभा कि निद्रा में यशोवर्धन का नाम सुनकर सर्वानंद गिरी कुछ चिंता में अवश्य पड़ गए क्योकि वह स्वयं भी भारत कि आजादी के समय धर्मान्ध उग्रता कि भेंट उनका स्वंय का परिवार चढ़ गया था सर्वानद जी के पिता माता की हत्या भी हिन्दू मुस्लिम दंगे में पूर्वी पाकिस्तान में ही हुआ था किसी तरह से छिपते छिपाते भाग्य के सहारे सर्वानद पूरे एक वर्ष में कालाहांडी जंगलों में पहुचे थे जो क्रूरता मॉनव का दानवी खेल उन्होंने स्वंव देखा था,,,,

वह इतना भयानक विभत्स एव हृदयविदारक था कि किसी भी मानव को भयाक्रांत कर जीवित ही मृत अवस्था मे पहचाने के लिए पर्याप्त था बच्चे महिलाएं बुजुर्ग बृद्ध बीमार लाचार अपाहिज भिखारी कोई तो नही बचा था जिसकि जाती कि तस्दीक करके मारा न गया हो सर्वानद ने जी भारत वासियों का अपने ही देश राष्ट्र मातृभूमि में इस प्रकार से पशुवत काटा जाना स्वंय देखा था वह स्वंय उसके एक पात्र थे उनको यह बात जीवन के इस दहलीज पर भी समझ मे नही आई की क्यो देश के राजनीतिज्ञों ने देश के बटवारे का निर्णय लिया अंग्रेजो ने जिस भारत को गुलाम बनाया था,,,,

वह सम्पूर्ण क्यो नही क्या तत्कालीन राजनीतिज्ञों कि भूल या किसी निहित स्वार्थपूर्ति की शीघ्रता में बटवारे को स्वीकार किया अंग्रेजो का यह तर्क की उन्होंने भारत के शासन कि बागडोर मुगलों से हासिल किया है और इस्टइंडिया कम्पनी के व्यवसाय कि अनुमति भी मुगल बादशाह द्वारा ही दी गयी थी अतः वे आजादी के बाद सत्ता की बाग डोर मुगल को ही सौंपेंगे इसीलिये एक दिन पूर्व पाकिस्तान स्वतंत्र हुआ यही आधार बना कर सबसे पहले भारतीय समाज का बटवारा किया धर्म के नाम पर और फिर उनमें बटवारा विवाद के रूप में कर दिया जिसके परिणाम कि देन अच्छे परिवार संस्कार के सर्वानंद गिरी जी काला हांडी के वनप्रदेश में वनवासी समाज के सानिध्य स्नेह सम्मान में सैकड़ो वर्ष पुराने शिवालय में रह रहे थे,,,

जहां उन्हें वनवासी समाज के निश्छल निर्विकार और निष्कपट संस्कृति सांस्कार ने जीवन के भयंकर भय से भयाक्रांत कर आहत कर देने वाली पीड़ा बचपन जिन्हें माँ बाप का नैह स्नेह ही मिलना उनका भाग्य सौभगय है उसी बचपन ने अपने नैह स्नेह मम्मता के आंचल को गाजर मूली कि तरह कटते हुये देखा जिसकी पीड़ा दंश से वनवासी समाज कि निर्विकार निःस्वार्थ अविरल स्नेह के सानिध्य संस्कार ने मरहम का कार्य किया और सर्वानद जी ने निश्चय ही कर लिया था कि वनवासी समाज ही उनका परिवार है,,,,

उन्ही के साथ जीवन है और उन्ही के बीच मरना तो क्या निद्रा में शुभा भी उन्ही कि तरह शेरपुर के जाने माने व्यवसायी की धर्मांधता के कहर से बची एकमात्र संतान है फिर सर्वानद को लगता कि ऐसा कैसे हो सकता है दंगे में सबसे पहले दंगाईयों ने सबसे पहले यशोवर्धन परिवार को ही अपना लक्ष्य बनाया था बेचारे

जारी है

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2 Comments

kashish

09-Sep-2023 08:13 AM

V nice

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Gunjan Kamal

16-Aug-2023 12:43 PM

बेहतरीन भाग

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